यह चालीसा भगवान बटुक भैरव को समर्पित एक भक्ति भजन है, जो भगवान शिव के एक उग्र और युवा स्वरूप हैं। इस माध्यम से इनकी महिमा, शक्तियों और करुणा की प्रशंसा और वर्णन करते हैं।
Batuk bhairav chalisa | batuk bhairav | श्री बटुक भैरव चालीसा
श्री बटुक भैरव चालीसा
दोहा
विश्वनाथ को सुमरि मन , धर गणेश का ध्यान |
भैरव चालीसा पढूं, कृपा करहु भाववान ||
बटुकनाथ भैरव भंजू , श्री काली के लाल |
मुझ दास पर कृपा कर, काशी के कुतवाल ||
चौपाई
जय जय श्री काली के लाला
रहो दास पर सदा दयाला ||
भैरव भीषण भीम कपाली
क्रोधवंत लोचन में लाली ||
कर त्रिशूल है कठिन कराला
गल में प्रभु मुंडन की माला ||
कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला
पीकर मद रहता मतवाला ||
रूद्र बटुक भक्तन के संगी
प्रेतनाथ भूतेश भुजंगी ||
त्रैल तेश है नाम तुम्हारा
चक्रदंड अमरेश पियारा ||
शेखर चंद्र कपाल विराजै
स्वान सवारी पै प्रभु गाजै ||
शिव नकुलेश चंड हो स्वामी
बैजनाथ प्रभु नमो नमामी ||
अश्वनाथ क्रोधेश बखाने
भैंरो काल जगत न जाने ||
गायत्री कहैं निमिष दिगंबर
जगन्नाथ उन्नत आडम्बर ||
क्षेत्रपाल दशपाणि कहाये
मंजुल उमानंद कहलाये ||
चक्रनाथ भक्तन हितकारी
कहैं त्रयम्बक सब नर नारी ||
संहारक सुनन्द तव नामा
करहु भक्त के पूरण कमा ||
नाथ पिशाचन के हो प्यारे
संकट मेटहु सकल हमारे ||
कृत्यायू सुन्दर आनन्दा
भक्त जनन के काटहु फंदा ||
कारण लम्ब आप जयभंजन
नमोनाथ जय जनमन रंजन ||
हो तुम देव त्रिलोचन नाथा
भक्त चरण में नावत माथा ||
त्वं अशतांग रूद्र के लाला
महाकाल कालों के काला ||
ताप विमोचन अरिदल नासा
भाल चन्द्रमा करहिं प्रकाशा ||
श्वेत काल अरु लाल शरीरा
मस्तक मुकुट शीश पर चीरा ||
काली के लाला बलधारी
कहां तक शोभा कहूँ तुम्हारी ||
शंकर के अवतार कृपाला
रहो चकाचक पी मद प्याला ||
काशी के कुतवाल कहाओ
बटुकनाथ चेटक दिखलाओ ||
रवि के दिन जन भोग लगावें
धुप दीप नैवेद्य चढ़ावें ||
दरशन करके भक्त सिहावें
दारुड़ा की धार पिलावें ||
मठ में सुन्दर लटकत झावा
सिद्ध कार्य कर भैरों बाबा ||
नाथ आपका यश नहीं थोड़ा
करमें सुभग सुशोभित कोड़ा ||
कटि घूंघरा सुरीले बाजत
कंचनमय सिंहासन राजत ||
नर नारी सब तुमको ध्यावहिं
मनवांछित इच्छाफल पावहिं ||
भोपा हैं आपके पुजारी
करें आरती सेवा भारी ||
भैरव भात आपका गाऊं
बार बार पद शीश नवाऊँ ||
आपही वारे छीजन धाये
ऐलादी ने रुदन मचाये ||
बहन त्यागी भाई कहाँ जावे
तो बिन को मोहि भात पिन्हावे ||
रोये बटुक नाथ करुणा कर
गये हिवारे मैं तुम जाकर ||
दुखित भई ऐलादी बाला
तब हर का सिंहासन हाला ||
समय ब्याह का जिस दिन आया
प्रभु ने तुमको तुरत पठाया ||
विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ
तीन दिवस को भैरव जाओ ||
दल पठान संग लेकर धाया
ऐलादी को भात पिन्हाया ||
पूरन आस बहन की कीनी
सुर्ख चुंदरी सिर धर दीनी ||
भात भरा लौटे गुण ग्रामी
नमो नमामी अन्तर्यामी ||
दोहा
जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार |
कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार ||
जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार |
उस घर सर्वानंद हों, भैरव बढ़ें अपार ||
बटुक भैरव को भैरव के बाल रूप के रूप में पूजा जाता है, जो भगवान शिव के सबसे शक्तिशाली और सुरक्षात्मक रूपों में से एक हैं। उन्हें बाधाओं को दूर करने, भक्तों को बुरी शक्तियों से बचाने और साहस, सफलता और समृद्धि प्रदान करने के लिए जाना जाता है।माना जाता है कि बटुक भैरव चालीसा का पाठ करने से भक्तों को नकारात्मक ऊर्जा, काले जादू और बुरी आत्माओं से सुरक्षा मिलती है। यह आंतरिक शक्ति और निडरता पैदा करता है।
नियमित पाठ आध्यात्मिक उत्थान और भगवान भैरव की कृपा प्राप्त करने में मदद करता है।
Batuk bhairav chalisa | batuk bhairav | श्री बटुक भैरव चालीसा