तुलसीदास जी ने जीवन के परम सत्य, भक्ति और नैतिकता को अपने काव्यों से समझाया है।
Tulsi das ke dohe | गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे अर्थ सहित
||रामचरितमानस||
जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन |
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ||
अर्थ – जिन्हें स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं,
जो गणों के स्वामी और सुन्दर हाथी के मुख वाले हैं,
वे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों के धाम श्री गणेश जी मुझ पर कृपा करें ||
मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन |
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मॉल दहन ||
अर्थ – जिनकी कृपा से गूँगा बहुत सुन्दर बोलने वाला हो जाता है
और लँगड़ा लूला दुर्गम पहाड़ पर चढ़ जाता है,
वे कलियुग के सब पापों को जला डालने वाले दयालु मुझपर दया करें ||
नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन |
करउ सो मम ुर धाम सदा छीरसागर सयन ||
अर्थ – जो नील कमल के समान श्याम वर्ण हैं,
पूर्ण खिले हुए लाल कमल समान जिनके नेत्र हैं और जो सदा क्षीरसागर में शयन करते हैं, वे नारायण मेरे हृदय में निवास करें ||
कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन |
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन ||
अर्थ – जिनका कुंद के पुष्प और चन्द्रमा के समान शरीर है,
जो पार्वती जी के प्रयतम और दयाके धाम हैं और जिनका दिनों पर स्नेह है, बे कामदेवका मर्दन करने वाले शंकर जी मुझपर कृपा करें ||
बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि |
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर ||
अर्थ – मैं उन गुरु महाराज के चरण कमल की वंदना करता हूँ,
जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोहरूपी घने अंधकार के नाश करने के लिये सूर्य किरणों के समूह हैं ||
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा | सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ||
अमिअ मूरिमय चूरन चारु | समन सकल भव रुज परिवारु ||
अर्थ – मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वंदना करता हूँ,
जो सुन्दर स्वाद, सुगंध और अनुरागरूपी रससे पूर्ण है, वह अमर मूल का सुन्दर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भवरोगों के परिवार के नाश करने वाला है ||
सुकृति संभु तन बिमल बिभूती | मंजुल मंगल मोद प्रसूती ||
जन मन मंजु मल हरनी | किएँ तिलक गुन गन बस करनी ||
अर्थ – वह रज सुकृति रूपी शिव जी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है,
और सुन्दर कल्याण और आनंद की जननी है, भक्त के मन रूपी सुन्दर दर्पण मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है ||
Tulsi das ke dohe | गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे अर्थ सहित